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kam se kam insan to rho

ᴛᴀᴋᴇ ᴄᴀʀᴇ

Favoured Frenzy
अनन्या एक गरीब लड़की थी। उसके पिता एक कपड़े की दुकान पर काम करते थे और मां दूसरों के घरों में चौका बरतन किया करती थी। अनन्या अपने मां-बाप की इकलौती लड़की थी। उसके मां बाप ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला था। वे चाहते थे कि अनन्या पढ़ लिख कर बड़ी आदमी बने, जिससे उसके सिर से गरीबी का कलंक मिट जाए।

अनन्या ने जब 10वीं का इम्तहान पास किया, तो उसके मां—बाप बहुत खुश हुए। उन्होंने कस्बे के एक इंटर कॉलेज में उसका नाम लिखवा दिया। इंटर कालेज उसके घर से थोड़ी दूरी पर था। इसलिए उसके मां बाप ने किसी तरह पैसोें का जुगाड़ करके उसे एक पुरानी साइकिल भी दिला दी, जिससे अनन्या को स्कूल जाने में परेशानी न हो।

अनन्या जब साईकिल पर बैठ कर स्कूल जाती, तो उसे लगता जैसे वह आसमान में उड़ रही हो। यह उसका बहुत पुराना सपना था, जो उसके मां बाप की वजह से पूरा हुआ था। इसलिए वह रोज़ समय से स्कूल पहुंच जाती और मन लगाकर पढ़ाई करती।

लेकिन एक दिन अनन्या की जिंदगी में एक नया मोड़ आया। दोपहर का समय था। स्कूल से छुट्टी होने पर उसने अपनी साइकिल ली और घर की ओर चल पड़ी। लेकिन अभी वह थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि पीछे से आती एक बाइक उसके बगल से गुजरी। बाइक को जो लड़का चला रहा था, वह उसका हमउम्र ही था। लड़के ने थोड़ा आगे जाकर अपनी बाइक रोक दी और अनन्या को रूकने का इशारा किया।

अनन्या उस लड़के को अक्सर रास्ते में देखा करती थी। जब भी वह स्कूल आती और स्कूल से जाती, तो वह लड़का सडक के किनारे खड़ा उसे निहारा करता था। शुरू—शुरू में उसे देख कर अनन्या को बहुत गुस्सा आता था, लेकिन धीरे-धीरे वह उसे अच्छा लगने लगा था।

इस तरह से रास्ते में रोके जाने से अनन्या घबरा सी गयी। पहले उसका मन हुआ कि वह अपनी साइकिल आगे बढ़ा दे, लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर उसने अपनी साइकिल में ब्रेक लगा दिया। वह लड़का अनन्या के पास आ गया और धीरे से बोला- ''मेरा नाम सुमित है। मैं रोज आपको स्कूल जाते हुए देखता हूं। अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।''

'क्या?' अनन्या के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला।

सुमित ने अपनी शर्ट की जेब से एक गुलाब की कली निकाल कर उसके हाथ में रख दी और उसकी मुटठी बंद करते हुए बोला- ''मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। उठते-बैठते, सोते जगते हर समय बस तुम्हारे बारे में सोचा करता हूं। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है...''

सुमित और भी बहुत कुछ कहना चाहता था, पर अनन्या ने उसके होठों पर हाथ रख कर उसे चुप करा दिया।
 
''तो आपको मेरा प्यार कुबूल है?'' उस लड़के ने अनन्या की आंखों में आंखें डाल कर पूछा।

अनन्या शर्मा गयी। उसने चुपचाप हां में अपनी गर्दन हिलाई और साइकिल पर बैठ कर तेज तेज पैडल चलाती हुई अपने घर को चली गयी।

इस तरह अनन्या और सुमित में बातचीत की शुरूआत हो गयी। सुमित रोज उसके लिए कोई न कोई गिफ्ट लाता और उसके लिए जीने मरने की कसमें खाता। उसकी बातें सुनकर अनन्या दीवानी हो जाती और सपनों की दुनिया में खो जाती।

एक दिन सुमित ने अनन्या से कहीं घूमने चलने का आग्रह किया। पहले तो अनन्या ने हल्का सा ना नुकुर किया, लेकिन फिर वह तैयार हो गयी।

उस दिन अनन्या बहुत खुश थी। वह तय समय पर उस जगह पहुंच गयी, जहां पर सुमित ने उससे मिलने के लिए कहा था। सुमित ने अनन्या की साइकिल को एक दोस्त की दुकान पर खड़ी कर दी और अनन्या को बाइक पर बैठा कर चल पड़ा।

सुमित अनन्या को लेकर नदी के पास पहुंचा। वहां पर उसने अपनी बाइक खड़ी कर दी और दोनों लोग घास पर बैठ कर बातें करने लगे। सुमित ने अनन्या से एक दो बातें की, फिर वह उसके करीब आ गया और उसके चेहरे से खेलने लगा।

धीरे धीरे अनन्या पर एक नशा सा छाता चला गया। शायद वह सुमित के मन की बात समझ नहीं पाई। इसलिए उसने अपने आप को सुमित के हवाले कर दिया। दोनों लोग एक दूसरे के प्यार में खो गये और दो जिस्म एक जान हो गये।

अभी वे दोनों लोग ठीक से नार्मल भी न हो पाए थे कि तभी न जाने कहां से वहां पर तीन लड़के आ गये। उन्हें देखकर अनन्या हक्का-बक्का रह गयी और जल्दी—जल्दी अपने कपड़े सही करने लगी। यह देख कर एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपने पास घसीटता हुआ बोला- ''इतनी भी क्या जल्दी है रानी, हम भी तो तुम्हारे दिवाने हैं। थोड़ा हमारा भी तो मनोरंजन कर दो।''

अनन्या ने कातर दृष्टि से सुमित की ओर देखा। पर वह अनन्या की मदद करने के बजाए, हंस रहा था। यह देख कर अनन्या का हृदय चीत्कार कर उठा। यानी कि यह सब सुमित की एक सोची समझी चाल थी?


अनन्या आगे कुछ सोच ही नहीं पाई। क्योंकि वे तीनों लड़के उसके उपर भूखे भेडिए की तरह टूट पड़े थे। अनन्या मदद के लिए चिल्लती रही और वे उसे नोचते-घसोटते रहे। कुछ ही पलों में अनन्या की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया और वह बेहोश हो गयी।

लगभग एक घंटे के बाद अनन्या को होश आया। वे तीनों लड़के और सुमित वहां से जा चुके थे। दर्द की वजह से उसके शरीर की प्रत्येक नस फट रही थी। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाया हुआ था। उसके सारे सपने ध्वस्त हो चुके थे, उसे अपना जीवन समाप्त होता हुआ नज़र आ रहा था।

अनन्या सोचती रही कि क्यों मैंने सुमित की बातों पर विश्वास किया? क्यों मैं उसके साथ बस्ती से इतनी दूर यहां पर आई? अब मैं क्या मुंह लेकर अपने घर जाऊंगी? अपने मां-बाप को क्या बताऊंगी? मेरा ये हाल देखकर वे तो जीतेजी मर जाएंगे।

अनन्या के शरीर में बिलकुल भी शक्ति नहीं बची थी। वह किसी तरह घि‍सटती हुई नदी के किनारे पहुंची। नदी का पानी कल-कल करता हुआ तेजी से बह रहा था। अनन्या ने एक बार फिर अपने गरीब मां-बाप के बारे में सोचा! लेकिन साथ ही सुमित का चेहरा भी उसकी आंखों के आगे तैर गया। और इसके साथ ही क्रोध, खीझ और घिन के मिले जुले भाव से उसका शरीर कांपने लगा।

अनन्या ने अपने दांतों को किटकिटाया, अपने शरीर की बची खुशी ताकत इकट्ठा किया और धीरे से खड़ी की। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, हाथों को जोड़ कर मन ही मन अपने माता पिता से माफी मांगी और फिर नदी में छलांग लगा दी।

अगले ही पल अनन्या नदी में डूबने उतराने लगी। लेकिन अब न तो वह किसी को अपनी जान बचाने के लिए पुकार रही थी और न ही बचने के लिए संघर्ष कर रही थी। उसका मन अब भी अपने बेवफा प्रेमी के बारे में सोच रहा था। वह सोच रही थी कि क्यों मैंने उसकी बातों पर इतना ऐतबार कर लिया, क्यों मैंने उससे अंधा प्यार किया, क्यों मैं उसकी नियत को समझ नहीं पाई? अगर मैं ऐसा कर पाती, तो शायद.... और फिर वह नदी की गहराई में डूबती चली गयी।

दोस्तो, किसी से प्यार करना, किसी पर ऐतबार करना बुरा नहीं है, लेकिन अपने भीतर जज़्बातों को पहचानने की क्षमता भी रखिए। किसी की बातों पर ऐतबार करने से पहले उसे एक बार ज़रूर परखिए, किसी को अपना तन-मन सौंपने से पहले उसके परिणामों के बारे में भी ज़रूर सोचिए।
 
अनन्या एक गरीब लड़की थी। उसके पिता एक कपड़े की दुकान पर काम करते थे और मां दूसरों के घरों में चौका बरतन किया करती थी। अनन्या अपने मां-बाप की इकलौती लड़की थी। उसके मां बाप ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला था। वे चाहते थे कि अनन्या पढ़ लिख कर बड़ी आदमी बने, जिससे उसके सिर से गरीबी का कलंक मिट जाए।

अनन्या ने जब 10वीं का इम्तहान पास किया, तो उसके मां—बाप बहुत खुश हुए। उन्होंने कस्बे के एक इंटर कॉलेज में उसका नाम लिखवा दिया। इंटर कालेज उसके घर से थोड़ी दूरी पर था। इसलिए उसके मां बाप ने किसी तरह पैसोें का जुगाड़ करके उसे एक पुरानी साइकिल भी दिला दी, जिससे अनन्या को स्कूल जाने में परेशानी न हो।

अनन्या जब साईकिल पर बैठ कर स्कूल जाती, तो उसे लगता जैसे वह आसमान में उड़ रही हो। यह उसका बहुत पुराना सपना था, जो उसके मां बाप की वजह से पूरा हुआ था। इसलिए वह रोज़ समय से स्कूल पहुंच जाती और मन लगाकर पढ़ाई करती।

लेकिन एक दिन अनन्या की जिंदगी में एक नया मोड़ आया। दोपहर का समय था। स्कूल से छुट्टी होने पर उसने अपनी साइकिल ली और घर की ओर चल पड़ी। लेकिन अभी वह थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि पीछे से आती एक बाइक उसके बगल से गुजरी। बाइक को जो लड़का चला रहा था, वह उसका हमउम्र ही था। लड़के ने थोड़ा आगे जाकर अपनी बाइक रोक दी और अनन्या को रूकने का इशारा किया।

अनन्या उस लड़के को अक्सर रास्ते में देखा करती थी। जब भी वह स्कूल आती और स्कूल से जाती, तो वह लड़का सडक के किनारे खड़ा उसे निहारा करता था। शुरू—शुरू में उसे देख कर अनन्या को बहुत गुस्सा आता था, लेकिन धीरे-धीरे वह उसे अच्छा लगने लगा था।

इस तरह से रास्ते में रोके जाने से अनन्या घबरा सी गयी। पहले उसका मन हुआ कि वह अपनी साइकिल आगे बढ़ा दे, लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर उसने अपनी साइकिल में ब्रेक लगा दिया। वह लड़का अनन्या के पास आ गया और धीरे से बोला- ''मेरा नाम सुमित है। मैं रोज आपको स्कूल जाते हुए देखता हूं। अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।''

'क्या?' अनन्या के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला।

सुमित ने अपनी शर्ट की जेब से एक गुलाब की कली निकाल कर उसके हाथ में रख दी और उसकी मुटठी बंद करते हुए बोला- ''मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। उठते-बैठते, सोते जगते हर समय बस तुम्हारे बारे में सोचा करता हूं। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है...''

सुमित और भी बहुत कुछ कहना चाहता था, पर अनन्या ने उसके होठों पर हाथ रख कर उसे चुप करा दिया।
Nice
 
''तो आपको मेरा प्यार कुबूल है?'' उस लड़के ने अनन्या की आंखों में आंखें डाल कर पूछा।

अनन्या शर्मा गयी। उसने चुपचाप हां में अपनी गर्दन हिलाई और साइकिल पर बैठ कर तेज तेज पैडल चलाती हुई अपने घर को चली गयी।

इस तरह अनन्या और सुमित में बातचीत की शुरूआत हो गयी। सुमित रोज उसके लिए कोई न कोई गिफ्ट लाता और उसके लिए जीने मरने की कसमें खाता। उसकी बातें सुनकर अनन्या दीवानी हो जाती और सपनों की दुनिया में खो जाती।

एक दिन सुमित ने अनन्या से कहीं घूमने चलने का आग्रह किया। पहले तो अनन्या ने हल्का सा ना नुकुर किया, लेकिन फिर वह तैयार हो गयी।

उस दिन अनन्या बहुत खुश थी। वह तय समय पर उस जगह पहुंच गयी, जहां पर सुमित ने उससे मिलने के लिए कहा था। सुमित ने अनन्या की साइकिल को एक दोस्त की दुकान पर खड़ी कर दी और अनन्या को बाइक पर बैठा कर चल पड़ा।

सुमित अनन्या को लेकर नदी के पास पहुंचा। वहां पर उसने अपनी बाइक खड़ी कर दी और दोनों लोग घास पर बैठ कर बातें करने लगे। सुमित ने अनन्या से एक दो बातें की, फिर वह उसके करीब आ गया और उसके चेहरे से खेलने लगा।

धीरे धीरे अनन्या पर एक नशा सा छाता चला गया। शायद वह सुमित के मन की बात समझ नहीं पाई। इसलिए उसने अपने आप को सुमित के हवाले कर दिया। दोनों लोग एक दूसरे के प्यार में खो गये और दो जिस्म एक जान हो गये।

अभी वे दोनों लोग ठीक से नार्मल भी न हो पाए थे कि तभी न जाने कहां से वहां पर तीन लड़के आ गये। उन्हें देखकर अनन्या हक्का-बक्का रह गयी और जल्दी—जल्दी अपने कपड़े सही करने लगी। यह देख कर एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपने पास घसीटता हुआ बोला- ''इतनी भी क्या जल्दी है रानी, हम भी तो तुम्हारे दिवाने हैं। थोड़ा हमारा भी तो मनोरंजन कर दो।''

अनन्या ने कातर दृष्टि से सुमित की ओर देखा। पर वह अनन्या की मदद करने के बजाए, हंस रहा था। यह देख कर अनन्या का हृदय चीत्कार कर उठा। यानी कि यह सब सुमित की एक सोची समझी चाल थी?


अनन्या आगे कुछ सोच ही नहीं पाई। क्योंकि वे तीनों लड़के उसके उपर भूखे भेडिए की तरह टूट पड़े थे। अनन्या मदद के लिए चिल्लती रही और वे उसे नोचते-घसोटते रहे। कुछ ही पलों में अनन्या की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया और वह बेहोश हो गयी।

लगभग एक घंटे के बाद अनन्या को होश आया। वे तीनों लड़के और सुमित वहां से जा चुके थे। दर्द की वजह से उसके शरीर की प्रत्येक नस फट रही थी। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाया हुआ था। उसके सारे सपने ध्वस्त हो चुके थे, उसे अपना जीवन समाप्त होता हुआ नज़र आ रहा था।

अनन्या सोचती रही कि क्यों मैंने सुमित की बातों पर विश्वास किया? क्यों मैं उसके साथ बस्ती से इतनी दूर यहां पर आई? अब मैं क्या मुंह लेकर अपने घर जाऊंगी? अपने मां-बाप को क्या बताऊंगी? मेरा ये हाल देखकर वे तो जीतेजी मर जाएंगे।

अनन्या के शरीर में बिलकुल भी शक्ति नहीं बची थी। वह किसी तरह घि‍सटती हुई नदी के किनारे पहुंची। नदी का पानी कल-कल करता हुआ तेजी से बह रहा था। अनन्या ने एक बार फिर अपने गरीब मां-बाप के बारे में सोचा! लेकिन साथ ही सुमित का चेहरा भी उसकी आंखों के आगे तैर गया। और इसके साथ ही क्रोध, खीझ और घिन के मिले जुले भाव से उसका शरीर कांपने लगा।

अनन्या ने अपने दांतों को किटकिटाया, अपने शरीर की बची खुशी ताकत इकट्ठा किया और धीरे से खड़ी की। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, हाथों को जोड़ कर मन ही मन अपने माता पिता से माफी मांगी और फिर नदी में छलांग लगा दी।

अगले ही पल अनन्या नदी में डूबने उतराने लगी। लेकिन अब न तो वह किसी को अपनी जान बचाने के लिए पुकार रही थी और न ही बचने के लिए संघर्ष कर रही थी। उसका मन अब भी अपने बेवफा प्रेमी के बारे में सोच रहा था। वह सोच रही थी कि क्यों मैंने उसकी बातों पर इतना ऐतबार कर लिया, क्यों मैंने उससे अंधा प्यार किया, क्यों मैं उसकी नियत को समझ नहीं पाई? अगर मैं ऐसा कर पाती, तो शायद.... और फिर वह नदी की गहराई में डूबती चली गयी।

दोस्तो, किसी से प्यार करना, किसी पर ऐतबार करना बुरा नहीं है, लेकिन अपने भीतर जज़्बातों को पहचानने की क्षमता भी रखिए। किसी की बातों पर ऐतबार करने से पहले उसे एक बार ज़रूर परखिए, किसी को अपना तन-मन सौंपने से पहले उसके परिणामों के बारे में भी ज़रूर सोचिए।
Great bro
 
अनन्या एक गरीब लड़की थी। उसके पिता एक कपड़े की दुकान पर काम करते थे और मां दूसरों के घरों में चौका बरतन किया करती थी। अनन्या अपने मां-बाप की इकलौती लड़की थी। उसके मां बाप ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला था। वे चाहते थे कि अनन्या पढ़ लिख कर बड़ी आदमी बने, जिससे उसके सिर से गरीबी का कलंक मिट जाए।

अनन्या ने जब 10वीं का इम्तहान पास किया, तो उसके मां—बाप बहुत खुश हुए। उन्होंने कस्बे के एक इंटर कॉलेज में उसका नाम लिखवा दिया। इंटर कालेज उसके घर से थोड़ी दूरी पर था। इसलिए उसके मां बाप ने किसी तरह पैसोें का जुगाड़ करके उसे एक पुरानी साइकिल भी दिला दी, जिससे अनन्या को स्कूल जाने में परेशानी न हो।

अनन्या जब साईकिल पर बैठ कर स्कूल जाती, तो उसे लगता जैसे वह आसमान में उड़ रही हो। यह उसका बहुत पुराना सपना था, जो उसके मां बाप की वजह से पूरा हुआ था। इसलिए वह रोज़ समय से स्कूल पहुंच जाती और मन लगाकर पढ़ाई करती।

लेकिन एक दिन अनन्या की जिंदगी में एक नया मोड़ आया। दोपहर का समय था। स्कूल से छुट्टी होने पर उसने अपनी साइकिल ली और घर की ओर चल पड़ी। लेकिन अभी वह थोड़ी दूर ही पहुंची थी कि पीछे से आती एक बाइक उसके बगल से गुजरी। बाइक को जो लड़का चला रहा था, वह उसका हमउम्र ही था। लड़के ने थोड़ा आगे जाकर अपनी बाइक रोक दी और अनन्या को रूकने का इशारा किया।

अनन्या उस लड़के को अक्सर रास्ते में देखा करती थी। जब भी वह स्कूल आती और स्कूल से जाती, तो वह लड़का सडक के किनारे खड़ा उसे निहारा करता था। शुरू—शुरू में उसे देख कर अनन्या को बहुत गुस्सा आता था, लेकिन धीरे-धीरे वह उसे अच्छा लगने लगा था।

इस तरह से रास्ते में रोके जाने से अनन्या घबरा सी गयी। पहले उसका मन हुआ कि वह अपनी साइकिल आगे बढ़ा दे, लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर उसने अपनी साइकिल में ब्रेक लगा दिया। वह लड़का अनन्या के पास आ गया और धीरे से बोला- ''मेरा नाम सुमित है। मैं रोज आपको स्कूल जाते हुए देखता हूं। अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।''

'क्या?' अनन्या के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला।

सुमित ने अपनी शर्ट की जेब से एक गुलाब की कली निकाल कर उसके हाथ में रख दी और उसकी मुटठी बंद करते हुए बोला- ''मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। उठते-बैठते, सोते जगते हर समय बस तुम्हारे बारे में सोचा करता हूं। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है...''

सुमित और भी बहुत कुछ कहना चाहता था, पर अनन्या ने उसके होठों पर हाथ रख कर उसे चुप करा दिया।
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