मेरी रूह जो भटक रही है
मन में तुम्हारा प्रेम समेटे,
सुबह की पवित्रता
दोपहर की ख़ामोश आँखें
संध्या की धूपबत्ती से भरी ख़ुशबू
और रात की गहराइयाँ भी
मेरी रूह से तुम्हारे इश्क को
जुदा नहीं कर सकती...!!!
रूह भटक रही है
चारों पहर
मन में तुम्हारा प्रेम समेटे...!!!
मन में तुम्हारा प्रेम समेटे,
सुबह की पवित्रता
दोपहर की ख़ामोश आँखें
संध्या की धूपबत्ती से भरी ख़ुशबू
और रात की गहराइयाँ भी
मेरी रूह से तुम्हारे इश्क को
जुदा नहीं कर सकती...!!!
रूह भटक रही है
चारों पहर
मन में तुम्हारा प्रेम समेटे...!!!





what a rooh...