मुझे मेरी कविता से मिलना है...
वो कई दिनों से खेल रही है
मेरे साथ
आंख मिचौली...
उसे पता है
आंख मिचौली मेरा पसंदीदा खेल नहीं है
आंखों को ढंक देना
कि कुछ दिखे ना
सब अंधेरा हो जाए
ये डराता है मुझे
वो मेरे साथ भाग दौड़ खेल के भी जीत सकती है
मैं कोशिश कर सकता हूं
पकड़ने की उसे
पर वो दिखती तो रहनी ही चाहिए मुझे
मैं उसे देख ही न पाऊं
वो ओझल रहे मेरी आंखों से
ये उसकी कोई चालाकी तो नहीं
क्यों न मै नाराज़ हो जाऊं उससे
मनाने तो आयेगी ही
तब पकड़ कर उसे
मैं खत्म कर दूंगा ये खेल।
वो कई दिनों से खेल रही है
मेरे साथ
आंख मिचौली...
उसे पता है
आंख मिचौली मेरा पसंदीदा खेल नहीं है
आंखों को ढंक देना
कि कुछ दिखे ना
सब अंधेरा हो जाए
ये डराता है मुझे
वो मेरे साथ भाग दौड़ खेल के भी जीत सकती है
मैं कोशिश कर सकता हूं
पकड़ने की उसे
पर वो दिखती तो रहनी ही चाहिए मुझे
मैं उसे देख ही न पाऊं
वो ओझल रहे मेरी आंखों से
ये उसकी कोई चालाकी तो नहीं
क्यों न मै नाराज़ हो जाऊं उससे
मनाने तो आयेगी ही
तब पकड़ कर उसे
मैं खत्म कर दूंगा ये खेल।