Oishika
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कहते हैं बंधनों के कई रूप होते हैं.. सात फेरो का बंधन, सात जन्मों का बंधन, जन्मों जन्मों का बंधन.. पर एक बंधन और भी होता है मन से मन का बंधन.. रेशम सा बहते नीर सा, हवाओं में बहता सा महकते इत्र सा.. बंधे एक ही डोर से मन से मन को, हर भीर में तलाश ति एक दूसरे को.. उस नाम को, उसके लिखे शब्दों को, यही तो है मन से मन का बंधन.. देखते सुनते जाने कब कैसे खुद की आत्मा मन और मृत्यु मिल से जाते हैं बांध से जाते हैं, और फिर प्रेम हो जाता है..बस हो जाता है एक दूसरे को मन से मन को, शायद इस बंधन में कोई अग्नि साक्षी नहीं, हवन नहीं कोई सात वचन नहीं पर सब से अलग है ये... ना बंधने की चाहत ना टूटने की मन बस ऐसा है ये मन से मन का बंधन......