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प्रेम.....

Siddhantrt

Epic Legend
प्रेम...

प्रेम ! ये शब्द खुद में कितना अधूरा लगता है ना,
मगर असल में इंसान इसके बिना अधूरा है,
किसी ना किसी बहाने इस से हर कोई जुड़ा हुआ है,
कहीं ना कहीं कोई तो होगा
जिसकी मुस्कुराहट के लिये घन्टों उसे निहारते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसकी खुशी के लिये
कितनो को मायूस कर देते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसके ना होने से
ज़िंदगी अधूरी सी लगती होगी,
भले ही आप खुद को कितना भी मज़बूत बनायें,
कितना भी मुस्कुरायें मगर उसके ना होने की मायूसी आपकी आंखों मे होती है,
सुना है आंखें कभी झूठ नही बोलतीं
बस आंखों को पढ़ने का हुनर होना चाहिये....

दौर बदले तरीका बदला
मगर एक इंतज़ार है वो नही बदला,
इंतज़ार में होने वाली बेचैनी का रंग नही बदला,
पहले नुक्कड़ पर आशिक अपनी महबूब का इंतज़ार किया करते थे
बार बार उस मोड़ की तरफ ताकते रहते थे
जहां से उसने आना होता था,
कप के कप खाली हो जाते थे
चाय की दुकान पर चाय के,
कितनी सिगरेटें आपकी बेचैनी की बली चढ़ जाया करती थीं,
मगर अब दौर बदल गया है,
प्रेम ने पैर पसार लिये हैं
कानून के साथ अब
प्रेम के भी हाथ पैर दोनो लम्बे हो गये,
अब प्रेम एक राज्य से दूसरे में पनपने लगा है,
अब नुक्कड़ की जगह फेसबुक पर इंतज़ार होता है,
उनके लाल हरे पीले किसी रंग में रंगे प्रोफाईल पिक का,
मैसेंजर पर टननन से बजना
और मैसेज देखते ही खुशी की लहर का
पुरे बदन में धमा चौकड़ी मचाना,
एहसास नही बदला बस तरीका बदल गया है,
अब आंखें नही समाईली हँसती या रोती है,
अब का प्रेम मन की तारों के मजबूत होने का उदाहरण सा बन गया है,
इस प्रकार का प्रेम प्रेम का एक बहुत ही चर्चित रूप है,
बाकी के रूपों में इतनी बेचैनी नही जितनी इस मे है....

मगर अनन्त से जो प्रेम निस्वार्थ चला आ रहा है
वो प्रेम है माँ का,
जो इस प्रेम में टूट जाने के बाद
हमें आज भी संभाल लेता है,
जब रोती हुईं आंखें इनके कंधों पर टिकती हैं
तब अहसास होता है
कोमल सी दिखने वाली माँ
असल में कितनी मजबूत है,

एक रूप है बहन का
जो अक्सर गलतियों को छुपा कर
फिर हमे चिढ़ा कर अपने होने का
एहसास कराती है,
जो हम से मांगती बहुत कुछ है
मगर चाहती बस हमारी खुशी है....

एक सब का मिला जुला
और बड़ा ही विचित्र प्रेम है दोस्ती का,
इसकी तुलना ना किसी से हुई ना होगी,
ये कई बार आपको सोचने पर मजबूर कर देगी
कि ये प्रेम है या द्वेश,
ये अक्सर नाटक करते हैं
आपके दुख को ना समझने का,
दुख का मज़ाक बनाने का,
मगर असल में जो सबसे ज़्यादा आपको समझते हैं
वो दोस्त ही हैं,
और अनेको रूप हैं प्रेम के,
जिसने सबको खुद से
किसी ना कियी रूप में बांध कर रखा है,
बस महसूस करने की ज़रूरत है,
आप भी करें आपको भी एहसास हो जायेगा.....!!!!
 
प्रेम...

प्रेम ! ये शब्द खुद में कितना अधूरा लगता है ना,
मगर असल में इंसान इसके बिना अधूरा है,
किसी ना किसी बहाने इस से हर कोई जुड़ा हुआ है,
कहीं ना कहीं कोई तो होगा
जिसकी मुस्कुराहट के लिये घन्टों उसे निहारते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसकी खुशी के लिये
कितनो को मायूस कर देते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसके ना होने से
ज़िंदगी अधूरी सी लगती होगी,
भले ही आप खुद को कितना भी मज़बूत बनायें,
कितना भी मुस्कुरायें मगर उसके ना होने की मायूसी आपकी आंखों मे होती है,
सुना है आंखें कभी झूठ नही बोलतीं
बस आंखों को पढ़ने का हुनर होना चाहिये....

दौर बदले तरीका बदला
मगर एक इंतज़ार है वो नही बदला,
इंतज़ार में होने वाली बेचैनी का रंग नही बदला,
पहले नुक्कड़ पर आशिक अपनी महबूब का इंतज़ार किया करते थे
बार बार उस मोड़ की तरफ ताकते रहते थे
जहां से उसने आना होता था,
कप के कप खाली हो जाते थे
चाय की दुकान पर चाय के,
कितनी सिगरेटें आपकी बेचैनी की बली चढ़ जाया करती थीं,
मगर अब दौर बदल गया है,
प्रेम ने पैर पसार लिये हैं
कानून के साथ अब
प्रेम के भी हाथ पैर दोनो लम्बे हो गये,
अब प्रेम एक राज्य से दूसरे में पनपने लगा है,
अब नुक्कड़ की जगह फेसबुक पर इंतज़ार होता है,
उनके लाल हरे पीले किसी रंग में रंगे प्रोफाईल पिक का,
मैसेंजर पर टननन से बजना
और मैसेज देखते ही खुशी की लहर का
पुरे बदन में धमा चौकड़ी मचाना,
एहसास नही बदला बस तरीका बदल गया है,
अब आंखें नही समाईली हँसती या रोती है,
अब का प्रेम मन की तारों के मजबूत होने का उदाहरण सा बन गया है,
इस प्रकार का प्रेम प्रेम का एक बहुत ही चर्चित रूप है,
बाकी के रूपों में इतनी बेचैनी नही जितनी इस मे है....

मगर अनन्त से जो प्रेम निस्वार्थ चला आ रहा है
वो प्रेम है माँ का,
जो इस प्रेम में टूट जाने के बाद
हमें आज भी संभाल लेता है,
जब रोती हुईं आंखें इनके कंधों पर टिकती हैं
तब अहसास होता है
कोमल सी दिखने वाली माँ
असल में कितनी मजबूत है,

एक रूप है बहन का
जो अक्सर गलतियों को छुपा कर
फिर हमे चिढ़ा कर अपने होने का
एहसास कराती है,
जो हम से मांगती बहुत कुछ है
मगर चाहती बस हमारी खुशी है....

एक सब का मिला जुला
और बड़ा ही विचित्र प्रेम है दोस्ती का,
इसकी तुलना ना किसी से हुई ना होगी,
ये कई बार आपको सोचने पर मजबूर कर देगी
कि ये प्रेम है या द्वेश,
ये अक्सर नाटक करते हैं
आपके दुख को ना समझने का,
दुख का मज़ाक बनाने का,
मगर असल में जो सबसे ज़्यादा आपको समझते हैं
वो दोस्त ही हैं,
और अनेको रूप हैं प्रेम के,
जिसने सबको खुद से
किसी ना कियी रूप में बांध कर रखा है,
बस महसूस करने की ज़रूरत है,
आप भी करें आपको भी एहसास हो जायेगा.....!!!!
Wah bahut sundar
 
प्रेम...

प्रेम ! ये शब्द खुद में कितना अधूरा लगता है ना,
मगर असल में इंसान इसके बिना अधूरा है,
किसी ना किसी बहाने इस से हर कोई जुड़ा हुआ है,
कहीं ना कहीं कोई तो होगा
जिसकी मुस्कुराहट के लिये घन्टों उसे निहारते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसकी खुशी के लिये
कितनो को मायूस कर देते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसके ना होने से
ज़िंदगी अधूरी सी लगती होगी,
भले ही आप खुद को कितना भी मज़बूत बनायें,
कितना भी मुस्कुरायें मगर उसके ना होने की मायूसी आपकी आंखों मे होती है,
सुना है आंखें कभी झूठ नही बोलतीं
बस आंखों को पढ़ने का हुनर होना चाहिये....

दौर बदले तरीका बदला
मगर एक इंतज़ार है वो नही बदला,
इंतज़ार में होने वाली बेचैनी का रंग नही बदला,
पहले नुक्कड़ पर आशिक अपनी महबूब का इंतज़ार किया करते थे
बार बार उस मोड़ की तरफ ताकते रहते थे
जहां से उसने आना होता था,
कप के कप खाली हो जाते थे
चाय की दुकान पर चाय के,
कितनी सिगरेटें आपकी बेचैनी की बली चढ़ जाया करती थीं,
मगर अब दौर बदल गया है,
प्रेम ने पैर पसार लिये हैं
कानून के साथ अब
प्रेम के भी हाथ पैर दोनो लम्बे हो गये,
अब प्रेम एक राज्य से दूसरे में पनपने लगा है,
अब नुक्कड़ की जगह फेसबुक पर इंतज़ार होता है,
उनके लाल हरे पीले किसी रंग में रंगे प्रोफाईल पिक का,
मैसेंजर पर टननन से बजना
और मैसेज देखते ही खुशी की लहर का
पुरे बदन में धमा चौकड़ी मचाना,
एहसास नही बदला बस तरीका बदल गया है,
अब आंखें नही समाईली हँसती या रोती है,
अब का प्रेम मन की तारों के मजबूत होने का उदाहरण सा बन गया है,
इस प्रकार का प्रेम प्रेम का एक बहुत ही चर्चित रूप है,
बाकी के रूपों में इतनी बेचैनी नही जितनी इस मे है....

मगर अनन्त से जो प्रेम निस्वार्थ चला आ रहा है
वो प्रेम है माँ का,
जो इस प्रेम में टूट जाने के बाद
हमें आज भी संभाल लेता है,
जब रोती हुईं आंखें इनके कंधों पर टिकती हैं
तब अहसास होता है
कोमल सी दिखने वाली माँ
असल में कितनी मजबूत है,

एक रूप है बहन का
जो अक्सर गलतियों को छुपा कर
फिर हमे चिढ़ा कर अपने होने का
एहसास कराती है,
जो हम से मांगती बहुत कुछ है
मगर चाहती बस हमारी खुशी है....

एक सब का मिला जुला
और बड़ा ही विचित्र प्रेम है दोस्ती का,
इसकी तुलना ना किसी से हुई ना होगी,
ये कई बार आपको सोचने पर मजबूर कर देगी
कि ये प्रेम है या द्वेश,
ये अक्सर नाटक करते हैं
आपके दुख को ना समझने का,
दुख का मज़ाक बनाने का,
मगर असल में जो सबसे ज़्यादा आपको समझते हैं
वो दोस्त ही हैं,
और अनेको रूप हैं प्रेम के,
जिसने सबको खुद से
किसी ना कियी रूप में बांध कर रखा है,
बस महसूस करने की ज़रूरत है,
आप भी करें आपको भी एहसास हो जायेगा.....!!!!
U wrote beautifully ❤️
 
प्रेम...

प्रेम ! ये शब्द खुद में कितना अधूरा लगता है ना,
मगर असल में इंसान इसके बिना अधूरा है,
किसी ना किसी बहाने इस से हर कोई जुड़ा हुआ है,
कहीं ना कहीं कोई तो होगा
जिसकी मुस्कुराहट के लिये घन्टों उसे निहारते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसकी खुशी के लिये
कितनो को मायूस कर देते होंगे आप,
कोई तो होगा जिसके ना होने से
ज़िंदगी अधूरी सी लगती होगी,
भले ही आप खुद को कितना भी मज़बूत बनायें,
कितना भी मुस्कुरायें मगर उसके ना होने की मायूसी आपकी आंखों मे होती है,
सुना है आंखें कभी झूठ नही बोलतीं
बस आंखों को पढ़ने का हुनर होना चाहिये....

दौर बदले तरीका बदला
मगर एक इंतज़ार है वो नही बदला,
इंतज़ार में होने वाली बेचैनी का रंग नही बदला,
पहले नुक्कड़ पर आशिक अपनी महबूब का इंतज़ार किया करते थे
बार बार उस मोड़ की तरफ ताकते रहते थे
जहां से उसने आना होता था,
कप के कप खाली हो जाते थे
चाय की दुकान पर चाय के,
कितनी सिगरेटें आपकी बेचैनी की बली चढ़ जाया करती थीं,
मगर अब दौर बदल गया है,
प्रेम ने पैर पसार लिये हैं
कानून के साथ अब
प्रेम के भी हाथ पैर दोनो लम्बे हो गये,
अब प्रेम एक राज्य से दूसरे में पनपने लगा है,
अब नुक्कड़ की जगह फेसबुक पर इंतज़ार होता है,
उनके लाल हरे पीले किसी रंग में रंगे प्रोफाईल पिक का,
मैसेंजर पर टननन से बजना
और मैसेज देखते ही खुशी की लहर का
पुरे बदन में धमा चौकड़ी मचाना,
एहसास नही बदला बस तरीका बदल गया है,
अब आंखें नही समाईली हँसती या रोती है,
अब का प्रेम मन की तारों के मजबूत होने का उदाहरण सा बन गया है,
इस प्रकार का प्रेम प्रेम का एक बहुत ही चर्चित रूप है,
बाकी के रूपों में इतनी बेचैनी नही जितनी इस मे है....

मगर अनन्त से जो प्रेम निस्वार्थ चला आ रहा है
वो प्रेम है माँ का,
जो इस प्रेम में टूट जाने के बाद
हमें आज भी संभाल लेता है,
जब रोती हुईं आंखें इनके कंधों पर टिकती हैं
तब अहसास होता है
कोमल सी दिखने वाली माँ
असल में कितनी मजबूत है,

एक रूप है बहन का
जो अक्सर गलतियों को छुपा कर
फिर हमे चिढ़ा कर अपने होने का
एहसास कराती है,
जो हम से मांगती बहुत कुछ है
मगर चाहती बस हमारी खुशी है....

एक सब का मिला जुला
और बड़ा ही विचित्र प्रेम है दोस्ती का,
इसकी तुलना ना किसी से हुई ना होगी,
ये कई बार आपको सोचने पर मजबूर कर देगी
कि ये प्रेम है या द्वेश,
ये अक्सर नाटक करते हैं
आपके दुख को ना समझने का,
दुख का मज़ाक बनाने का,
मगर असल में जो सबसे ज़्यादा आपको समझते हैं
वो दोस्त ही हैं,
और अनेको रूप हैं प्रेम के,
जिसने सबको खुद से
किसी ना कियी रूप में बांध कर रखा है,
बस महसूस करने की ज़रूरत है,
आप भी करें आपको भी एहसास हो जायेगा.....!!!!
Waaaaaah Bahut Sundar :heart1:
 
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