
जीवन की ये मोड़, है एक स्वप्न बस-स्टैंड,
हज़ारों आँखों में है, सफलता का गंतव्य-बैंड।
सबके बैग में आशा, सीने में गहरा तेज़,
कोई चाहे नाम-शोहरत, कोई खोजे अवसर का रेज़।
यहाँ मिलते हैं कितने चेहरे, कितनी बातें,
लक्ष्य पाने की राह में, सबकी हैं व्यग्र रातें।
कोई थामे हाथ चलता, कोई दे साहस-कूद,
पर अपनी लड़ाई तो खुद ही लड़नी है बखूबी।
जब भी आती है वो मनचाही बस,
हर कोशिश में तब जागता दृढ़ विश्वास।
धीरे-धीरे बढ़कर जब पहुँच जाते हैं,
जीत का सुकून तब बस अकेले पाते हैं।
सहयात्री देते हैं तालियाँ दूर से,
जीत का स्वाद बस मन अकेले चूसे।
वास्तविकता कहती है, संघर्ष खुद का नाम है,
गंतव्य पाकर भी अकेले, ये जीवन का दाम है।
इंतज़ार का दुख सहकर, चलते हैं मुट्ठी ताने,
सपने और मंज़िलें छपी हैं स्मृतियों के हर पन्ने।
अकेलापन और प्राप्ति—दोनों ही सच हैं,
इस बस-स्टैंड पर खिलते हैं जीवन के पूर्ण पलछिन।


