गर हूं पसंद, बताते क्यूँ नहीं हक़ है तुम्हे जताने का,
फिर जताते क्यों नहीं माना डरते होगे तुम, बेपरवाही से हमारी पर वादा जो किया,
वो निभाते क्यूँ नहीं।
तुम हो फूल से नाजुक, पंखुड़ियों सी कोमल इस वीरान बगिया को फिर सजाते क्यूं नहीं।
चुप्पी का राज़ क्या है, कुछ तो ख़ास होगा वरना ऐसे तुम हमसे शरमाते तो नहीं !!
जो दिल में है, उसे जताना ही अच्छा जाने वाले बार-बार आते तो नहीं।
बात तो है कुछ, अपने दरम्यान भी
"ये" किस्से सभी को तुम सुनाते तो नहीं।
कुछ तो साज़िश होगी, हमारा यूँ टकराना वरना हम भी उस रास्ते कभी जाते तो नहीं।
गर इज़ाज़त हो, तो पूछ लूं एक सवाल तुमसे तुम सबको ही ऐसे, कहीं आजमाते तो नहीं ??