sameerkh1
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आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता हैकबूतरों की कश्ती है
छोटे से मन में एक सुंदर सी बस्ती है
ख्याल है , ख्वाब है
अनगीने एहसास है
कुछ राहें हैं
और
वो बड़ा सा आसमान है
और
कबूतरों के जहां में
ये आसमान जरा सा गुमनाम है
शिकारी बहुत है
और छोटी सी जान है
दुनिया की परेशानियों से
ये मन जरा सा परेशान है
और इस
खुले आसमान में
मानो कोई अजनबी सा ज्ञान हैं
गुलाबी बादलों में
वो सुनेहरी सी शाम हैं
जिसमे
उड़ते हुए आसमान में
मन का परिंदा जरा बईमान है
की शिकारी बहुत है
और .....
जहानों की जहान में
वह एक अलग ही जहान है
खुशियों की खिलखारिया
उम्मीद से यारियां ऐसी
कि आसमान भी हैरान है
उड़ते हुए बादलों संग यह मन अब पूरा नादान है
की खुशियों के जाल में खोया , एक इंसान है ।।
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है