वक्त की रेत हाथों से, कुछ यूं फिसल गई.
जिंदगी समझे जब तक, जिंदगी निकल गई.
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किया था वादा ता-उम्र, इमदाद का उसने
मुश्किलों मे किस्मत की भी, नीयत बदल गई.
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बेमन उदास बैठी थी, तन्हाई में जब शाम
आमद जो उसकी हुई तो, तबियत बहल गई.
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दुनिया की बंदिशों का, हमें इल्म है मगर
उसे पाने की फिर भी, ख्वाहिश...