आँखों में है अरमान छुपा, पहचान सके न कौन,
दिल की बात होंठों पर ठहरी, छाया है गहरा मौन।
तुम हो मेरे अंतरंग का वह शाश्वत अधिकार,
जिसको न दे सका कभी भी कोई लौकिक आकार।
यह प्रेम नहीं है कोई क्षणिक सी माया,
यह तो मेरे अस्तित्व की शाश्वत छाया।
मैं करता हूँ तुम्हारी आराधना सबसे चुपके से,
जैसे भक्त पूजता है ईश्वर को, अत्यंत झुकके से।
तुम मेरी पवित्र आस्था, गुप्त मेरे मंदिर की,
दुनिया से छिपा रखी है यह पावन प्रीत अंदर की।
जानता हूँ, यह विरह का पथ है दुर्गम और निराधार,
पर इस निगूढ़ भावना में ही है तृप्ति का सार।
मन ने किया है समर्पण तुम्हें, यह पुनीत अनुराग,
शायद जीवनपर्यंत रहे यह अव्यक्त राग।
पर जान लो, हर जन्म में तुम ही मेरी अंतिम प्रतिज्ञा हो,
यह नीरव समर्पण ही मेरी सर्वोच्च पूजा हो।
दिल की बात होंठों पर ठहरी, छाया है गहरा मौन।
तुम हो मेरे अंतरंग का वह शाश्वत अधिकार,
जिसको न दे सका कभी भी कोई लौकिक आकार।
यह प्रेम नहीं है कोई क्षणिक सी माया,
यह तो मेरे अस्तित्व की शाश्वत छाया।
मैं करता हूँ तुम्हारी आराधना सबसे चुपके से,
जैसे भक्त पूजता है ईश्वर को, अत्यंत झुकके से।
तुम मेरी पवित्र आस्था, गुप्त मेरे मंदिर की,
दुनिया से छिपा रखी है यह पावन प्रीत अंदर की।
जानता हूँ, यह विरह का पथ है दुर्गम और निराधार,
पर इस निगूढ़ भावना में ही है तृप्ति का सार।
मन ने किया है समर्पण तुम्हें, यह पुनीत अनुराग,
शायद जीवनपर्यंत रहे यह अव्यक्त राग।
पर जान लो, हर जन्म में तुम ही मेरी अंतिम प्रतिज्ञा हो,
यह नीरव समर्पण ही मेरी सर्वोच्च पूजा हो।


