यकीन तो नहीं की सूरज को कोई हवा बुझा सकेइस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई,
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया।
अब वो झोंके कहाँ सबा जैसेइस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई,
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया।
Bahut khoobअब वो झोंके कहाँ सबा जैसे
आग है शहर की हवा जैसे,
शब सुलगती है दोपहर की तरह
चाँद, सूरज से जल बुझा जैसे,
मुद्दतों बाद भी ये आलम है
आज ही तू जुदा हुआ जैसे
इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम
मैं शरीक़े सफ़र न था जैसे,
अब भी वैसी है दूरी ए मंज़िल
साथ चलता हो रास्ता जैसे..!!
यकीन तो नहीं की सूरज को कोई हवा बुझा सके
लेकिन तुमने कहा है तो बात जरूर गंभीर ही होगी।