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❤️❤️Vivahit streeyan❤️❤️

B

Bahut bodmas ho ji abhi se poisa bachane ki irada hai poti dev ki :angel:
Aise dost mile to sayad bach jaye jisko party chaiye sab apni taraf se karle par hame party chaiye to khul k party Dede, kanjusi bilkul nai chalega party Karne me BHI aur party dene BHI apni credit card ache se use Karna ham kuchu na bolenge
:rofl1:
 
स्त्री सिर्फ़ तब तक
हमारी होती है
जब तक वो हमसे
रूठ लेती है,
लड़ लेती है
आँसू बहा बहा कर,
और दे देती है
दो चार उलाहना हमें /

कह देती है
जो मन में आता है उसके
बिना सोचे, बेधड़क
लेकिन जब वो देख लेती है
उसके रूठने का,
उसके आँसुओं का
कोई फर्क़ नहीं है
तो एकाएक वो
रूठना छोड़ देती है
रोना छोड़ देती है /

मुस्कुरा कर देने लगती है
ज़वाब हमारी बातों पर,
समेट लेती है वो ख़ुद को
किसी कछुए की तरह
अपने ही कवच में,
और हम समझ लेते हैं कि
सब कुछ ठीक हो गया है /

हम जान ही नहीं पाते
कि ये शान्त नहीं है
मृतप्राय हो चुकी है,
कहीं न कहीं
गला घोंट दिया है
उसने अपनी भावनाओं का,
और अब जो हमारे पास है,
वो हमारी हो कर भी
हमारी नहीं है /

क्योंकि स्त्री,
सिर्फ तब तक
हमारी होती है

जब तक प्रेम फैल रहा होता है //

साभार - ओशो विचार

FB_IMG_1714653072898.jpg
 
Ye sahansilta ki antim charan ki BAAT he
स्त्री सिर्फ़ तब तक
हमारी होती है
जब तक वो हमसे
रूठ लेती है,
लड़ लेती है
आँसू बहा बहा कर,
और दे देती है
दो चार उलाहना हमें /

कह देती है
जो मन में आता है उसके
बिना सोचे, बेधड़क
लेकिन जब वो देख लेती है
उसके रूठने का,
उसके आँसुओं का
कोई फर्क़ नहीं है
तो एकाएक वो
रूठना छोड़ देती है
रोना छोड़ देती है /

मुस्कुरा कर देने लगती है
ज़वाब हमारी बातों पर,
समेट लेती है वो ख़ुद को
किसी कछुए की तरह
अपने ही कवच में,
और हम समझ लेते हैं कि
सब कुछ ठीक हो गया है /

हम जान ही नहीं पाते
कि ये शान्त नहीं है
मृतप्राय हो चुकी है,
कहीं न कहीं
गला घोंट दिया है
उसने अपनी भावनाओं का,
और अब जो हमारे पास है,
वो हमारी हो कर भी
हमारी नहीं है /

क्योंकि स्त्री,
सिर्फ तब तक
हमारी होती है

जब तक प्रेम फैल रहा होता है //

साभार - ओशो विचार

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Ye sahansilta ki antim charan ki BAAT he
स्त्री सिर्फ़ तब तक
हमारी होती है
जब तक वो हमसे
रूठ लेती है,
लड़ लेती है
आँसू बहा बहा कर,
और दे देती है
दो चार उलाहना हमें /

कह देती है
जो मन में आता है उसके
बिना सोचे, बेधड़क
लेकिन जब वो देख लेती है
उसके रूठने का,
उसके आँसुओं का
कोई फर्क़ नहीं है
तो एकाएक वो
रूठना छोड़ देती है
रोना छोड़ देती है /

मुस्कुरा कर देने लगती है
ज़वाब हमारी बातों पर,
समेट लेती है वो ख़ुद को
किसी कछुए की तरह
अपने ही कवच में,
और हम समझ लेते हैं कि
सब कुछ ठीक हो गया है /

हम जान ही नहीं पाते
कि ये शान्त नहीं है
मृतप्राय हो चुकी है,
कहीं न कहीं
गला घोंट दिया है
उसने अपनी भावनाओं का,
और अब जो हमारे पास है,
वो हमारी हो कर भी
हमारी नहीं है /

क्योंकि स्त्री,
सिर्फ तब तक
हमारी होती है

जब तक प्रेम फैल रहा होता है //

साभार - ओशो विचार

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