कहना तो बहुत कुछ है तुझसे,
मगर कह कहाँ पाता हूँ,
सच है कि जीना है अब तेरे बग़ैर,
मगर एक पल भी रह नहीं पाता हूँ ।
एक कोशिश रोज़ होती है तुझे भुलाने की,
मगर एक पल भी भुला कहाँ पाता हूँ,
देखता तो हूँ ख़्वाब हर रात,
मगर ख़ुद को सुला नहीं पाता हूँ ।
लिये फिरता हूँ एक समन्दर इन आँखों में,
मगर रो लूँ जी भर ऐसा कहाँ कर पाता हूँ,
जीना ही मुमकिन कहाँ था तेरे बग़ैर,
मगर मज़बूर हूँ, मर भी नहीं पाता हूँ ।
तू अगर देख पाती तो समझ जाती,
कि इस बेबसी को छुपा कहाँ पाता हूँ,
छलक जाता है दर्द कभी अल्फाज़ों से भी,
मगर मैं ख़ामोश भी रह नहीं पाता हूँ ।

मगर कह कहाँ पाता हूँ,
सच है कि जीना है अब तेरे बग़ैर,
मगर एक पल भी रह नहीं पाता हूँ ।
एक कोशिश रोज़ होती है तुझे भुलाने की,
मगर एक पल भी भुला कहाँ पाता हूँ,
देखता तो हूँ ख़्वाब हर रात,
मगर ख़ुद को सुला नहीं पाता हूँ ।
लिये फिरता हूँ एक समन्दर इन आँखों में,
मगर रो लूँ जी भर ऐसा कहाँ कर पाता हूँ,
जीना ही मुमकिन कहाँ था तेरे बग़ैर,
मगर मज़बूर हूँ, मर भी नहीं पाता हूँ ।
तू अगर देख पाती तो समझ जाती,
कि इस बेबसी को छुपा कहाँ पाता हूँ,
छलक जाता है दर्द कभी अल्फाज़ों से भी,
मगर मैं ख़ामोश भी रह नहीं पाता हूँ ।


apko dekh sikh raha bas

