(हिन्दी में थोडी कमजोर हु ज्यादा भी हो सकता है
)
हजारों वर्ष पहले आज ही के दिन धर्म स्थापित कर्ने के लिए और पापका नष्ट करके प्रेम की सही परीभाषा दिखाने श्री कृष्ण इस धर्ती पे जन्म लिए थे ,,,
और जन्म भी लिए तो भी एक कॉल कोठरीमे , उस कॉल कोठरी में जन्म लेके भी उन्होने सारे जहाँको प्रेम के संग ज्ञान की रोस्नी से उजाला छरके गए थे ,और इस धर्ती पे रहने वालो को गीता जैसे ज्ञान का भंडार छोर गए , आज भी माना जाता गीता में सुखद जीवन यापन से लेके मनुष्य की कर्तव्यको स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं ,
श्री कृष्ण की ये जन्म असत्य पे सत्य का विजय की तरफ की पहली कदम थी ,, उनकी जन्म से अधर्मी में भये का बिझ रोपण हो रहाथा तो धार्मिक शन्त साधु ने राहत का आभास कर रहे थे ,
उनकी बाल लिला अद्भुत सुनी और सुनाई जाती हैं , उनकी प्रेम अलौकिक मानी जाती हैं !
माताओं का प्रेम, भाइ से भाई चारी , शाखा सखी का प्रेम, और वो प्रेम जो आत्माओं से जुड्के अनन्तक का प्रेम ,
जब प्रेम की बात आती हे तो राधा का नाम जुड जाती हैं , दर्साजाती हैं कि प्रेम खोना पाना इन सब से परे है ,,,,प्रेम बस प्रेम हैं उसके रंग में घुल्ना और उसी में समा जना ही तो प्रेम हैं!
न कान्हा कर्तव्य से मुडे न उन्होने प्रेम से ही मुह मुडे, न राधा ने उनको रोकी न कोई रीति रिवाज या सामाजिक नियमको तोडी उनहि नियमको पालना कर्ते हुए वो बस प्रेम ही कर्ती रही, उनकी इस प्रेम भाव से उनकी आस पास के सब प्रेम मय बन्जाता, उनकी तन् मन हर जगह हर किसी में बस उनका प्रेमी श्री कृष्ण दिख्ता था उनमे प्रेम इत्ना था कि कान्हा साथ न होन से भी उनको ये दूरी का एहसास नहीं होताथा क्यों कि वह कृष्ण प्रेम मे इत्नी मगन् हुई कि खुद कान्हा में समा के वह प्रेम मुरत बन्गई थी ,, तो कान्हा उन्के पूजारन ,
.................... जय श्री कृष्ण
कृष्ण जन्म अष्टमी की धेर सरी शुभ कामना सारे zozo परिवार को
प्रेमको तू ने बे -खुबी से निभाया था
कान्हा
बनी थी राधा तब प्रेम मुरत
जब तू ने प्रेम कर्ना सिखाया था
तेरी अन्दाज बढी नीराली थी
प्रेम दर्साने के अन्दाज बढी प्यारी थी

मन मोहक नटखट , हे सब से प्यारे
और तुम ही तो थे यसोदा मैया के दुलारे
जब जब प्रेम की धुन बजती थी
हो के मगन सारा जहाँ झुम्ती थी
राधा के प्यारे यशोधा मैया के दुलहारे
सब गोपिया कहती थी ओ कान्हा
आके मेरे अङ्गना तू माखन चुराले
तेरी छवि इत्नी प्यारी थी
प्रेम मगन हो के तुने
राधा को सवारी थी
कर के प्रेम तूने प्रेम कर्ना सिखाया
दुनिया में प्रेम की सही अर्थ बताया,
पर आज का प्रेम
आज न राधा न कोई श्याम हैं
प्रेम बस एक कहानी का नाम है
हर कदम कदम पे ठोकर मिल्ती है
अब कहाँ फुल भी हस के खिल्ती हैं
लब्ज़ो से प्रेम की वर्षाद, आखो में हे धोके दारी
ऐसा लगता हे प्रेम प्रेमीका न हो के,हो कोही व्यापारी
प्रेम के नाम से अब यहाँ दगा मिलता हैं
ओ कान्हा अब कहाँ वैसा वफा मिलता है
आज न राधा न कोई श्याम हैं
प्रेम बस एक कहानी का नाम है

हजारों वर्ष पहले आज ही के दिन धर्म स्थापित कर्ने के लिए और पापका नष्ट करके प्रेम की सही परीभाषा दिखाने श्री कृष्ण इस धर्ती पे जन्म लिए थे ,,,
और जन्म भी लिए तो भी एक कॉल कोठरीमे , उस कॉल कोठरी में जन्म लेके भी उन्होने सारे जहाँको प्रेम के संग ज्ञान की रोस्नी से उजाला छरके गए थे ,और इस धर्ती पे रहने वालो को गीता जैसे ज्ञान का भंडार छोर गए , आज भी माना जाता गीता में सुखद जीवन यापन से लेके मनुष्य की कर्तव्यको स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं ,
श्री कृष्ण की ये जन्म असत्य पे सत्य का विजय की तरफ की पहली कदम थी ,, उनकी जन्म से अधर्मी में भये का बिझ रोपण हो रहाथा तो धार्मिक शन्त साधु ने राहत का आभास कर रहे थे ,
उनकी बाल लिला अद्भुत सुनी और सुनाई जाती हैं , उनकी प्रेम अलौकिक मानी जाती हैं !
माताओं का प्रेम, भाइ से भाई चारी , शाखा सखी का प्रेम, और वो प्रेम जो आत्माओं से जुड्के अनन्तक का प्रेम ,
जब प्रेम की बात आती हे तो राधा का नाम जुड जाती हैं , दर्साजाती हैं कि प्रेम खोना पाना इन सब से परे है ,,,,प्रेम बस प्रेम हैं उसके रंग में घुल्ना और उसी में समा जना ही तो प्रेम हैं!
न कान्हा कर्तव्य से मुडे न उन्होने प्रेम से ही मुह मुडे, न राधा ने उनको रोकी न कोई रीति रिवाज या सामाजिक नियमको तोडी उनहि नियमको पालना कर्ते हुए वो बस प्रेम ही कर्ती रही, उनकी इस प्रेम भाव से उनकी आस पास के सब प्रेम मय बन्जाता, उनकी तन् मन हर जगह हर किसी में बस उनका प्रेमी श्री कृष्ण दिख्ता था उनमे प्रेम इत्ना था कि कान्हा साथ न होन से भी उनको ये दूरी का एहसास नहीं होताथा क्यों कि वह कृष्ण प्रेम मे इत्नी मगन् हुई कि खुद कान्हा में समा के वह प्रेम मुरत बन्गई थी ,, तो कान्हा उन्के पूजारन ,
.................... जय श्री कृष्ण
कृष्ण जन्म अष्टमी की धेर सरी शुभ कामना सारे zozo परिवार को
प्रेमको तू ने बे -खुबी से निभाया था
कान्हा
बनी थी राधा तब प्रेम मुरत
जब तू ने प्रेम कर्ना सिखाया था
तेरी अन्दाज बढी नीराली थी
प्रेम दर्साने के अन्दाज बढी प्यारी थी

मन मोहक नटखट , हे सब से प्यारे
और तुम ही तो थे यसोदा मैया के दुलारे
जब जब प्रेम की धुन बजती थी
हो के मगन सारा जहाँ झुम्ती थी
राधा के प्यारे यशोधा मैया के दुलहारे
सब गोपिया कहती थी ओ कान्हा
आके मेरे अङ्गना तू माखन चुराले
तेरी छवि इत्नी प्यारी थी
प्रेम मगन हो के तुने
राधा को सवारी थी
कर के प्रेम तूने प्रेम कर्ना सिखाया
दुनिया में प्रेम की सही अर्थ बताया,
पर आज का प्रेम
आज न राधा न कोई श्याम हैं
प्रेम बस एक कहानी का नाम है
हर कदम कदम पे ठोकर मिल्ती है
अब कहाँ फुल भी हस के खिल्ती हैं
लब्ज़ो से प्रेम की वर्षाद, आखो में हे धोके दारी
ऐसा लगता हे प्रेम प्रेमीका न हो के,हो कोही व्यापारी
प्रेम के नाम से अब यहाँ दगा मिलता हैं
ओ कान्हा अब कहाँ वैसा वफा मिलता है
आज न राधा न कोई श्याम हैं
प्रेम बस एक कहानी का नाम है
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