Mohabbat ki himmat toh hum b rkhte hai,तुम्हें उस से मोहब्बत है तो हिम्मत क्यों नहीं करते
किसी दिन उस के दर पे रक्स-ए-वहशत क्यों नहीं करते
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यों नहीं करते
तुम्हारे दिल पे अपना नाम लिखा हम ने देखा है
हमारी चीज़ फिर हम को इनायत क्यों नहीं करते
मेरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने
तुम अपने घर की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यों नहीं करते
बदन बैठा है कब से कासा-ए-उम्मीद की सूरत
सो दे कर वस्ल की ख़ैरात रुख़्सत क्यूँ नहीं करते
क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर
क़यामत करने वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते
मैं अपने साथ जज़्बों की जमाअत ले के आया हूँ
जब इतने मुक़तदी हैं तो इमामत क्यूँ नहीं करते
तुम अपने होंठ आईने में देखो और फिर सोचो
कि हम सिर्फ़ एक बोसे पर कायनात क्यूँ नहीं करते
बहुत नाराज़ है वो और उसे हम से शिकायत है
कि इस नाराज़गी की भी शिकायत क्यूँ नहीं करते
कभी अल्लाह-मियाँ पूछेंगे तब उन को बताएँगे
किसी को क्यूँ बताएँ हम इबादत क्यूँ नहीं करते
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते
Par bewafao ke dar pe sar nhi jhukaate hai....
Shikayat ki aadat unhe ho gyi hogi,
Hum tog chaahkar b kisi se gilaa nhi krte hai..
