पिघलती रही चांदनी
कतरा-कतरा अधजगी आंखों में
कल रात भर….
नींद नहीं आई
बदलती रही करवटें , ग़ुम किसी की याद में
कल रात भर….
श्याम बादलों की ओट में
छुप गई थी चांदनी
गुमसुम रहा चांद
कल रात भर….
पलकों से उतर कर
तकिए पर अधलेटे
बैचेन रहे किसी के ख़्वाब
कल रात भर….
ख़ामोशी के आलम में
सुनता रहा दिल ये
अपनी ही धड़कनें
कल रात भर….
कतरा-कतरा अधजगी आंखों में
कल रात भर….
नींद नहीं आई
बदलती रही करवटें , ग़ुम किसी की याद में
कल रात भर….
श्याम बादलों की ओट में
छुप गई थी चांदनी
गुमसुम रहा चांद
कल रात भर….
पलकों से उतर कर
तकिए पर अधलेटे
बैचेन रहे किसी के ख़्वाब
कल रात भर….
ख़ामोशी के आलम में
सुनता रहा दिल ये
अपनी ही धड़कनें
कल रात भर….