
अब न किसी से कभी लगाव होगा फिर से,
न ही कोई कभी पसंद आयेगा फिर से...
अब न किसी के लिए रातों को जागेंगे फिर से,
न ही कभी किसी को देख कर मुस्कुराएंगे फिर से
अब न किसी को अपना कहेंगे फिर से,
न ही कभी कोई इतना पास आयेगा फिर से..
अब न किसी का मेरे पर हक़ होगा फिर से,
न ही मैं किसी पर भी हक़ जताउंगा फिर से...
अब न किसी के लिए गुनगुनायेंगे फिर से,
न ही किसी के लिये कुछ लिखेंगे फिर से..
अब न उस रास्ते पर साथ जाएंगे फिर से,
न ही कभी उस मंजिल की तरफ मुड़कर देखेंगे फिर से
अब न वो खिलखिलाती सुबह होगी फिर से,
न ही कभी वो महकती शामें होंगी फिर से...
अब न दिल को तकलीफ होगी फिर से
न ही कभी मोहब्बत होगी फिर से...