थर्रा जाए काल भी जिससे, ऐसी इसकी काया है,
इसने मूँछों के ताव में, सारा जग झुकाया है...
सिर पर बँधा जो साफ़ा है, वो केवल एक वस्त्र नहीं,
शत्रु का संहार करे जो, उससे कम कोई अस्त्र नहीं...
रणभेरी जब-जब गूँजेगी, यह काल बनकर टूटेगा,
इसके स्वाभिमान के आगे, हर पर्वत भी फूटेगा...
नसों में बिजली दौड़ रही...