नामों में बँधकर, यह ठहर नहीं सकता,
शब्दों के जाल में, यह उतर नहीं सकता।
निर्विकार, निःशब्द, बस बहता सा एक एहसास,
जो दिखे-सुने, वह प्रेम का प्रकाश नहीं पास।
न रंग, न रूप, न कोई पहचाना चेहरा,
ना सीमाओं में बँधा, ना कोई बंधन गहरा।
जहाँ विचार थमे, वहीं यह खिलता,
शांत मन में, जैसे चाँदनी सा गिरता।...